Mar
20

आँखों ने आँखों से न जाने कितने संवाद शुरू किये और पल भर में ढेर सारे सवाल पूँछ डाले .....शुरू हुए उस लम्बे सफ़र में एक पल यूँ लगा जैसे कि जुबाँ की जगह उन्होंने ही ले ली हो ...शायद लम्बी ख़ामोशी के बाद यह उनकी बातचीत का नया तरीका था ।
मेरी आँखों ने एक के बाद एक सवाल पूँछना शुरू किये.....जैसे न जाने कितनी गहरी दोस्ती हो हमारी...जैसे कितना हक़ बनता हो मेरा उस पर...यह सब पूँछने का...और उसकी आँखें भी सब कुछ सुनती रहीं, बिना कोई उत्तर दिए...शायद उसे मेरे अगले सवालों का इंतजार था ...वह सब कुछ सुने जा रही थी ...बिना कोई रोक-टोक के...जैसे उसे सब कुछ स्वीकार्य था...शायद उसके धैर्य की सीमा मुझसे कहीं अधिक थी ...
मेरी आँखों में आक्रोश और आवेश कुछ कम हो चला था ....अब सवालों की जगह शिकायतों ने ले ली थी ...ढेर सारी शिकायतें थीं मेरे पास, उससे कहने की...उससे पूछने कीं...कि ऐसा उसने क्यों किया ?...शायद उसकी कोई मजबूरी थी ...या अचानक से पैदा हुई स्थिति...जिसे वह संभाल न सकी...या फिर पहले से बनी हुई कोई सोच.......
वो बस मेरे सवालों, शिकायतों, कटाक्षों को सुने जा रही थी..... उसकी चुप्पी, उसकी ख़ामोशी, उसकी स्वीकृति बयाँ कर रही थी.... जैसे वो सब कुछ सुनने को तैयार हो.... मैं खुद भी नहीं जानता था कि इन सब में सच क्या है ?.....और झूठ क्या...सच जो सिर्फ उसे पता था ....जिसे मेरी आँखें उसकी आँखों में पढने की कोशिश कर रही थीं ...
मेरे पिछले सभी सवालों, शिकायतों में से किसी का जवाब उसने न दिया.....शायद वो कोई जवाब देना ही नहीं चाहती थी...या फिर कोई जवाब था ही नहीं उसके पास, देने के लिए.....सिर्फ मेरी ही आँखें बोल रही थीं.....जिनमें अनगिनत सवाल, शिकायतें और शिकवे थे.....
शायद वो इस बात से डरती थी कि मैं कोई और उम्मीद न लगा बैठूँ जिसे वो निभा न पाए....या फिर दोस्ती से परे नए रिश्ते न बना बैठूँ ...जो शायद उसे मंजूर न हों.....मुमकिन है कुछ और भी सोच रही होगी उसकी.....जिससे उसने अपने किये वादे को आखिरी पड़ाव पर तोड़ दिया....कुछ तो वजह रही होगी उसके जहन में.....शायद उस कशमकश में उसने जो किया वह एकतरफा निर्णय था ......उसके लिए दूर जाना एक निर्णय था जबकि मेरे लिए एक टूटता हुआ विश्वास....
उसकी हथेली का दवाब मेरी हथेली पर बढ़ता चला गया...जैसे वो और सवालों....और शिकायतों को न सुनना चाहती हो .....वो मुझे और बोलने से रोक लेना चाहती थी.....शायद उसके धैर्य की सीमा ख़त्म हो रही थी....मैं भी चुप हो चला था ...उसकी पलकें भी धीरे-धीरे झुक गयीं थीं....
अपने सीने पर कुछ आँसू के बूंदों की गर्माहट महसूस की.....जो उसकी बंद आँखों से बह निकले थे.....शायद वो भी उन्हें न रोक पायी थी.... मेरी नम आँखें भी गीली हो चली थीं.....मैंने जो हाथ बढाकर उसके आँसुओं को पौंछना चाहा तो नींद टूट गयी ....लगा ये तो एक ख्वाब था ....पर सीने पर कुछ आँसुओं के मोती अपनी जगह थे, और हथेली पर गर्माहट अभी बाकी थी ....
सुबह के ये सपने झूठे नहीं होते....ऐसा किसी से सुना था .....
शायद यह एक ख्वाब ही होगा ....
हो सकता है,आपका सपना पूरा हो ।
Thanx Suman & Vinay for your compliment...
Super.. Awesome... emotional....