Anuj Gupta
बस एक प्यास है, तुम्हे जानने की,
मंजिल तक पहुँचने की, जिसे मैंने देखा,
जाना, कभी पहचाना,
संकेत भी नहीं है मेरे पास,
पर फिर भी,
बस वही है मेरी आस, यही है चाह,
जुड़े राहें, मंजिल मिले,
कोई कदम फिसले,
कोई भटके,
बस चलता रहूँ ,
अपने सपनो मे ही - रमता रहूँ ,
चाहे थकूँ, चाहे गिरूँ,
पर गिर-गिर कर भी उठूँ ,
संकल्प टूटे, साहस रूठे,
पग -पग पर जागूँ,
समझूँ जीवन को,
जो है एक सतत परीक्षण,
स्वयं का सतत निरीक्षण,
बस बढता रहूँ, चलता रहूँ,
मंजिल तक पहुचूँ पहुचूँ,
पर साहस छूटे,
हर अवरोध टूटे,
मेरा विवेक,
मुझसे कभी रूठे ....
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